तुम हमारे हम तुम्हारे नहीं


 किस क़दर समझाएं तुम्हें 

तुम हो कि समझने को राजी नहीं 

हम जान गए हैं खुशी तुम्हारी 

हम है पर हम तुम्हारे नहीं l


जो बीते है पल संग तुम्हारे 

औरों के संग जिए नहीं 

पर नहीं रह सकते जीवन भर

हम तुम्हारे तुम हमारे नहीं l


हो एक दूजे के साए

इतने पास आए थे 

रह जाए उम्र भर यूँही 

ये स्वप्न में है मुमकिन 

पर जीवन की सच्चाईयों में नहीं l


हृदय में रिसता है नीर सा अब भी 

 अब इन आँखों में बहता नहीं

 बेज़ुबान सा हो गया है मन 

शब्द हैं पर वो बात नहीं ll


तुम भुला दो उन बाँहों को 

क्यों तरसते हो उनके लिए 

जो ख्वाबों में तो हैं मगर 

हक़ीक़त में मुक्कमल नहीं ll

Comments

Post a Comment

Popular Posts