मजदूर या मजबूर?

"मजदूर या मजबूर?"


मैं मजदूर हूं शायद इसीलिए मजबूर हूं
दौलत नहीं है शायद इसीलिए सबकी नजरों से दूर हूं।

भूख मिटाने को घर से रोज़ ही निकलता हूं
सोने की चिड़िया वाला देश मेरा फिर भी जाने क्यों अधिकांश भूखा ही सो जाता हूं।

घर में हज़ार उम्मीदें लिए कुछ नजरें इंतज़ार करती हैं
पर मेरी मजबूरी उनको सदा निराश ही करती है।

एक मौसम है जो बहुत ही भाता है मुझे
पेट भर खाना और कुछ सामान मिल जाता है मुझे।

बड़े बड़े लोग आकर हाथ जोड़ते हैं
जिसकी कभी सुध न ली उसके गले मिल नई उम्मीद जगाते हैं।

चुनाव नाम है शायद उस मौसम का जो कभी कभी आता है
पर जब भी आता है खुश कर जाता है।

जो गया नहीं कभी गांव से भी बाहर वो खबरों में छा जाता है
मतों की दुकान बंद होते ही फिर दो रोटी को तरस जाता है।

मैं करोड़ों में हूं फिर भी कोई खबर नहीं किसी को मेरी
एक नामी आदमी मर जाए तो सब मोमबत्तियां जलाते हैं।

आज भी दर दर भटक रहा हूं
 जब पूरा देश घर में है घर को तरस रहा हूं।

हजारों मील चलता हूं शायद घर की दहलीज दिख जाए
दो वक्त की रोटी छूट गई अब कहीं शरीर से जान भी न छूट जाए।

अब भी कोई सुध नहीं अब भी कोई आवाज़ नहीं उठाता
इतना महान देश मेरा क्या सच में मुझे नहीं पहचानता?



Comments

  1. True....deepest lines...very nyc nehu����

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  2. Very Nice#Deepest Meanings#Show Reality of Labours in Corona.

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  3. acha hai....nice one

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  4. Kya khoob likha hai...good👏👏👏 keep it up👍👍

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    1. Thanku Akshay. U all just read my poems and motivate me to write more n more😊🙏

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  5. Superb n gr8 lines.......😊

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  6. Nice write up, keep it up

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