मन


 "मन"


मन जाने क्यूं उदास है

सब जीवंत है हर ओर फिर भी कुछ ना रास है

महफिलों में रहता है अक्सर

फिर भी क्यूं तन्हाई पास है।

उलझता है सुलझता है

कभी कभी  बहकता है

समेटता हूं कितनी ही बार

फिर टूटकर बिखरता है

टुकड़े टुकड़े जोड़ कर

संजोया है इसको इसीलिए खास है।

ठहरने चाहे कभी उड़ना चाहे

कभी पीछे लौट फिर से बिता हुआ जीना चाहे

मन तो बस अपनी करना चाहे

सबकुछ अंजान सा है ये कैसा आभास है?

मिलता है बिछड़ता है

कभी कभी अकड़ता है

जो छूट गया हाथों से

उसकी यादों में जकड़ता है

अजीब है नादान है जाने क्यूं परेशान है

मन तो मन है कौन जाने क्या राज़ है???




Comments

  1. Good thoughts 👌👌👌👌

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  2. Waaah... Superrrbbb.... Awsommmm

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