रावण दहन
"रावण दहन"
देखा मैंने रावण का पुतला जलते हुए
रंग बिरंगी रोशनी आसमान में बिखेरते हुए
रावण जलते देख लोगों को जश्न मानते हुए
पर मुझे तो बस धूं धूं जलता पुतला दिखा
कोई बुराई नहीं मिटी कोई पाप ना खत्म हुआ
पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत का है
किन्तु मरे हुए को मारने में ये कैसी जीत है
सदियों से चलती आ रही ये कैसी रीत है
जो रावण है आज के खुद के भीतर या समाज के
वो तो यूंही घूम रहे हैं हर दिशा हर मार्ग में
फिर ये कैसी जीत है ये कैसा जश्न है
अन्याय से जो तड़प रहे है उनके लिए एक दंश है
ना सजा है कोई पापों की ना इस मर्ज का कोई इलाज है
लोग कल भी अंधकार में थे आज भी परेशान है।
तब राम आए थे धरती पर अन्याय को मिटाने के लिए
हमें अपने भीतर राम पैदा करना होगा आज के रावण के इंसाफ के लिए
धनुष बाण नहीं मिलकर एक चित्कार उठानी होगी सत्य के आह्वान में।
Hmmm...Shi baat hai
ReplyDeleteSahi
ReplyDeleteJi
Deleteमन की हारे हार है, मन के जीते जीत | आपका मन जिसको सत्य मानता है वैसा ही संसार दिखने लगता है।
ReplyDeleteWah wah...kya baat
ReplyDelete😊
Delete👏👏👏
ReplyDeleteDhanyawad
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