अनजान जज़्बात

 

"अनजान जज़्बात..."


नींद जाने कहां गुम है

अकसर सोचता हूं क्यों आंखें नम हैं

सब पास है सब रास है

फिर भी कुछ तो है जो कम है


दिल है या दिमाग़ बैचेन सा है

खत्म ही नहीं होता जाने कैसा गम है 

रूह भी परेशान, सोच भी नाकाम सी है

पीकर भी प्यासा हूं जाने कैसा जाम है


अधूरे से ख़्वाब फिसलते जा रहे हैं

हाथों में रेत है पर मकान बना रहे हैं

कहीं उजाले कहीं हज़ार दीपक जग मग

दूर ही नहीं होता जाने कैसा तम है


कभी सयाने कभी समझदार हम हैं

दिल का जब मामला हो तो सब सम है

तड़प जाएं तरस जाएं एक हल्की सी आह पर

सुकून मिलता ही नहीं ये कैसा दर है 


होंसले भी चूर चूर हो गए हैं दरक कर

मुकाम तक पहुंचते ही नहीं ये कैसे पग हैं

Comments

  1. Waaah kya baat h.. Bahut hi aubdar

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